Joshimath: उत्तराखंड का जल शोक, बांधों की बलि चढ़ते गांव

Ground reports by Hridayesh Joshi

By हृदयेश जोशी 23 Jan, 2023

https://hindi.newslaundry.com/2023/01/23/uttarakhand-joshimath-tehri-dam-crisis-houses-ntpc-project

उत्तराखंड में जहां भी हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट हैं, वहां गांव दरक रहे हैं. लोगों की जमीन धंस रही है और खेत बर्बाद हो रहे हैं.

“बेटा, हम घर से बेघर हो गये हैं. ये घर तो टूट कर गिर रहा है. मेरे नाती-पोते सब किराये के मकान में चले गये हैं. सरकार को अभी कुछ करना चाहिये. जब हम इसमें दफन हो जायेंगे तो वो क्या करेंगे?”

टिहरी बांध की मुख्य दीवार के समीप बसे पिपोला खास गांव से टिहरी झील का विहंगम दृश्य दिखता है. टिहरी बांध 1970 के दशक में बनना शुरू हुआ और इसका निर्माण 2005 में पूरा हुआ. तब 1000 मेगावॉट की जलविद्युत परियोजना के लिये पिपोला खास के 26 परिवारों को यहां से विस्थापित कर दूसरी जगह बसाया गया था, क्योंकि उनकी जमीन और घर झील में डूब गए लेकिन बाकी 190 परिवारों को डूब क्षेत्र से बाहर होने के कारण यहीं रहना पड़ा.  

सामाजिक कार्यकर्ता और वकील शांति प्रसाद भट्ट पिपोला गांव के निवासी हैं. वह बताते हैं कि टिहरी बांध से अधिक बिजली उत्पादन के लिये उसका जलस्तर 12 मीटर बढ़ा दिया गया और पिपोला खास में विनाशलीला होने लगी.

भट्ट कहते हैं, “इस झील का क्षेत्रफल करीब 42 वर्ग किलोमीटर है और इसका पानी स्थिर नहीं है. जब बरसात का सीज़न नहीं होता तो पानी घट जाता है, वर्ना बढ़ने लगता है. इसके मूवमेंट से पहाड़ दरक रहा है. घरों के फर्श और दीवारों पर चौड़ी दरारें हो गई हैं और घर झुकने लगे हैं. अब जिस पहाड़ पर गांव है वहां पावर कंपनी एक नई सुरंग बना रही है, जिससे दिक्कतें बढ़ गई हैं.”

सुरंगों के लिये विस्फोट और बार-बार विस्थापन 

न्यूज़लॉन्ड्री की टीम ने पिपोला खास गांव का दौरा किया और पाया कि कम से कम तीन-चौथाई घरों के फर्श और दीवारों में दरारें हैं. करीब दो-दर्जन घरों की हालात बेहद नाज़ुक दिखी. 

इसी गांव की बसंती देवी कहती हैं कि घर टूटने के अलावा जमीन और खेत भी धंस गये हैं. 

वह कहती हैं, “सरकार और (हाइड्रो पावर) कंपनी को होश में आना चाहिए. झील और सुरंग हमारे लिये सबसे बड़ी दिक्कतें हैं. हमारी कितनी सारी जमीन डूब गई, बाकी धंस रही है. घर तो बर्बाद हो ही गया है. हम कहां अपना अनाज उगाएं और कहां रहने को जाएं, यह सरकार ही हमें बताये.”…

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The sinking of Joshimath and the commercialisation of sacredness

वैज्ञानिकों ने बताया, अचानक क्यों धंसने लगा Joshimath?

#geologists का कहना है कि #joshimath संकट की सच्चाई को स्वीकार कर लेना चाहिए. जोशीमठ के कुछ हिस्सों में रहना अब कभी संभव नहीं होगा. न्यूज़लॉन्ड्री ने #himalayan क्षेत्र के भूविज्ञान को लंबे समय से कवर कर रहे वैज्ञानिकों नवीन जुयाल और सरस्वती प्रकाश सती से बात की. इन दोनों ही भूविज्ञानियों का कहना है कि वर्तमान स्थिति स्पष्ट करती है कि संवेदनशील जोशीमठ पर भार वहन क्षमता (लोड बियरिंग कैपेसिटी) से अधिक बोझ है जिसे तुरंत कम किया जाना चाहिए. डॉ जुयाल के मुताबिक, “अभी जो क्षेत्र धंस रहा है वह जोशीमठ के मध्य में है. यह उत्तर की ओर देखती हुई पहाड़ी ढलान है और प्रभावित हिस्सा (जोशीमठ नगर पालिका के दो निकायों) सुनील से लेकर मारवाड़ी तक जाता है. यह एक प्राकृतिक ढलान है. अतीत में एक भूस्खलन आया जिसने इस ढलान के गर्त को भर दिया. इसी ढलान के रास्ते सभी नाले और प्राकृतिक पानी के स्रोत पानी अलकनंदा नदी में ले जाते हैं.”

The sinking of Joshimath and the commercialisation of sacredness

Joshimath: The trauma of living in India’s sinking Himalayan town