बिहार और यूपी का एक बड़ा हिस्सा लू की चपेट में है। स्थानीय अखबारों में लू से मरने वालों की संख्या तो होती है मगर उसी के साथ एक लाइन यह भी होती है कि प्रशासन ने कहा है कि लू से नहीं मरे हैं। लू से लोग झुलस कर मर रहे हैं और मरने के बाद भी इसमें झूल रहे हैं कि लू से मरे हैं या नहीं मरे हैं। स्थानीय हिंदी अखबारों की खबरों को पढ़ने से पता चलता है कि जो प्रशासन लू को लेकर स्कूल कालेज बंद कर रहा है, चेतावनी दे रहा है, वही प्रशासन लू से मरने पर लू को कारण नहीं मानता है। वैसे आजकल लू को हीटवेव कहते हैं। आपके घर आने वाले अख़बार में लू को लेकर क्या ख़बरें आ रही हैं, और क्या नहीं आ रही हैं, ध्यान दीजिएगा।
